बनारस में करवा चौथ का पूजा विधि और व्रत कथा, जानिए कब होगा चांद का दीदार

बनारस में करवा चौथ का पूजा विधि और व्रत कथा, जानिए कब होगा चांद का दीदार


वाराणसी (ब्यूरो)- कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि करवा चौथ का व्रत निर्जला व्रत होता है। यानी पूरे दिन न कुछ खाते हैं और न ही पानी पीते हैं। शाम के समय भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा होती है। साथ ही करवा माता का पूजन किया जाता है। शाम को चांद देखकर अर्घ्य देते हैं और पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलते हैं। इसलिए इंतजार रहता है चांद के दीदार का। इस बार चांद ज्यादा परेशान नहीं करेगा। ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि चांद का दीदार 7 बजकर 58 मिनट पर होगा।

ये है कथा
ज्योतिषाचार्य डॉ अरविंद मिश्र ने बताया कि जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए, तो पतिव्रता सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को न ले जाने के लिए निवेदन किया। यमराज के न मानने पर सावित्री ने अन्न-जल का त्याग कर दिया। वो अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगीं। पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज विचलित हो गए, उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त कोई और वर मांग लो। सावित्री ने यमराज से कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता स्त्री होने के नाते सत्यवान के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था, इसलिए अपने वचन में बंधने के कारण एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज लेकर नहीं जा सके और सत्यवान के जीवन को सावित्री को सौंप दिया। कहा जाता है कि तब से स्त्रियां अन्न-जल का त्यागकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं।

करवाचौथ व्रत विधि
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चंद्रमा को अर्घ्य देने के साथ ही महिलाएं शिव, पार्वती, कार्तिकेय और गणेश की आराधना भी करें। महिलाएं खास ध्यान रखें कि चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास को दी जाती है। व्रत के दिन सुबह सुबह के अलावा शाम को भी महिलाएं स्नान करें। इसके पश्चात सुहागिनें यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’ विवाहित स्त्री पूरे दिन निर्जला (बिना पानी के) रहें। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा बनाएं, इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।

"आठ पूरियों की अठावरी बनाएं, हलवा बनाएं, पक्के पकवान बनाएं"। पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। गौरी को बैठाने के बाद उस पर लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं, इसके बाद माता का भी सोलह श्रृंगार करें। पूजन के बाद कथा पाठ सुनें, इसके बाद चंद्र दर्शन करने के बाद ही पानी पीकर व्रत खोलती हैं।
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